गुरुवार, 5 जून 2014

Duskarm ka prakop

बिक गयी है धरती , गगन बिक न जाए ,
बिक रहा है पानी,पवन बिक न जाए l
चाँद पर भी बिकने लगी है
जमीं .,
डर है की सूरज की तपन बिक न जाए l
हर जगह बिकने लगी है स्वार्थ नीति,
डर है की कहीं धर्म बिक न
जाए l
देकर दहॆज ख़रीदा गया है अब दुल्हे को ,
कही उसी के हाथों दुल्हन बिक न जाए l
हर काम की रिश्वत ले रहे अब ये नेता ,
कही इन्ही के हाथों वतन बिक न जाए l
सरे आम बिकने लगे अब
तो सांसद ,
डर है की कहीं संसद भवन बिक न जाए l
आदमी मरा तो भी आँखें खुली हुई हैं
डरता है मुर्दा , कहीं कफ़न बिक न जाए !!

बुधवार, 12 मार्च 2014

हमारे देश की कथन

सिसक सिसक कर रो रही है
मेरी भारत माता आज।
बिलख बिलख कर रो रहे हैं
संविधान निर्माता आज।
तड़प तड़प कर
रोता होगा गांधी सुभाष
का दिल भी आज।
चीख चीख कर रोते होंगे
भगतसिंह,बिस्मिल भी आज।

रोती होगी गंगा जमना,रोते
कश्मीर-हिमालय आज।
रोते होंगे मंदिर मस्जिद,रोते
सभी देवालय आज।
रोती होगी कन्याकुमारी,रो रही गौहाटी आज।
रो रहा है मरू प्रदेश
भी,रो रही चैपाटी आज।

आज देश में चारों ओर
गुण्डों का प्रशासन है।
और जूती की नोक पर पड़ा हुआ
अनुशासन है।
आज शास्त्री की पीठ में
छुरी भोंक दी जाती है।
और संसद की आंखो में मिर्च झोंक
दी जाती है।

बहुत सह लिया हम लोगों ने, अब
बदलाव जरूरी है।
चुप रहने से काम न चलेगा, अब
इंकलाब जरूरी है।

आज संसद चला रहे है गुण्डे तस्कर
और डाकू।
हाथापाई, मारपीट,
छीनाझपट्टी और चाकू।
कोई स्पीकर की टेबल का माईक
उखाड़ चला जाता है।
और सदन की सम्पत्ति के कागज
फाड़ चला जाता है।

संसद स्थगित करने को अब बहाने
बनाए जाते है।
पानी की तरह जनता के रूपए
बहाए जाते है।
राजनेता बर्बाद कर रहे है मेरे
भारत देश को।
और बदनाम किया जा रहा है
खादी वाले वेश को।

आज वतन के लोग यहां के नेताओं से
त्रस्त है।
लेकिन युवा पीढी तो प्रेम दिवस
में व्यस्त है।
पहले देश प्रेम के लिए हमें आगे
आना होगा।
और भ्रष्ट नेताओं से अब
छुटकारा पाना होगा।

बहुत सह लिया हम लोगों ने, अब
बदलाव जरूरी है।
चुप रहने से काम न चलेगा, अब
इंकलाब जरूरी है।

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2014

बीमारी से छूटें कैसे और जीवन में कभी बीमार न हो

परिचय-
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार सभी बीमारियों का एक ही कारण होता है शरीर में वेस्टप्रोडेक्ट का जमा होना और सभी बीमारियों का एक ही इलाज होता है उस वेस्टप्रोडेक्ट को शरीर से बाहर निकालना। किसी भी बीमारी के उत्पन्न होने के दो कारण हैं- पहला शरीर से कम वेस्टप्रोडेक्ट बाहर निकलना और दूसरा शरीर से वेस्टप्रोडेक्ट बाहर निकलने के रास्ते बंद हो जाना। यह वेस्टप्रोडेक्ट शरीर में जमा होने का कारण यह है कि हम भोजन को जितना अधिक भूनते हैं, पकाते हैं या तलते हैं उसमें उतना ज्यादा वेस्टप्रोडेक्ट बन जाता है जिससे शरीर में वेस्टप्रोडेक्ट बढ़ता जाता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने शरीर से वेस्टप्रोडेक्ट को दूर करने का जो तरीका बताया है वो है उपवास- जिस दिन हम उपवास करते हैं, उस दिन सारी एनर्जी शरीर की सफाई में लग जाती है और साफ होते ही शरीर स्वस्थ हो जाता है।
उपवास कैसे करें? उपवास के कुछ नियम हैं जैसे- आप उपवास करते हैं तो उसे हमेशा फलाहार से तोड़ें। बहुत से लोग उपवास तोड़ने के लिए हैवी डाईट, कोल्ड ड्रिंक आदि ले लेते हैं, मिठाई खा लेते हैं। लेकिन यह चीजें फायदे की जगह पर नुकसान पहुंचाने वाली होती है और इनसे पूरे दिन किए हुए उपवास का भी शरीर को कोई लाभ नहीं मिल पाता। इसलिए उपवास का पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए फलाहार का सेवन करना ही बेहतर है।
कारण- रोगों का कारण एक ही होता है शरीर में वेस्टप्रोडेक्ट का इकट्ठा हो जाना। ये अलग-अलग कारणों से से शरीर में इकट्ठा होता है जैसे- किसी का भोजन खराब है, पैनक्रियाज अर्थात पाचन संस्थान खराब है, किसी की निगेटिव थिंकिग ज्यादा है, किसी की रेस्टलैस लाईफ है, किसी को मानसिक तनाव ज्यादा है, कोई बाजार की चीजें ज्यादा खाता है, मिलावटी चीजें ज्यादा खाता है। इन कारणों से शरीर में वेस्टप्रोडेक्ट उत्पन्न होता है।
लक्षण- लक्षण बीमारियों के अनुसार होते हैं। वैसे किसी भी रोग के लिए कुछ सामान्य लक्षण हैं- यदि शरीर के सारे अंग ठीक से काम नहीं कर रहे हैं तो आप बीमार हैं जैसे- लैट्रिन खुलकर नहीं आती या बहुत पतली आती है तो आप बीमार हैं, पेट छाती से बड़ा है तो बीमार हैं, नींद नहीं आती तो बीमार हैं, दिन में आलस्य छाया रहता है तो बीमार हैं। कई बार सुनने को मिलता है कि मौसम में बदलाव के कारण जुकाम हो गया लेकिन जुकाम का कारण मौसम में बदलाव नहीं बल्कि शरीर में वेस्टप्रोडेक्ट का जमा होना है।
वेस्टप्रोडेक्ट के कारण शरीर में रजिस्टेंश पॉवर कम होने पर शरीर मौसम के साथ रियेक्ट करता है जिसके कारण जुकाम होता है। यदि शरीर में वेस्टप्रोडेक्ट नहीं होता, रजिस्टेंश पॉवर कम नहीं होती तो जुकाम नहीं होता। यदि मौसम परिवर्तन से बीमारियां होती तो सभी बीमार होते। मेडिकल सिस्टम बीमारियों के लिए टेस्ट पर टेस्ट करवाने को कहता है और डॉक्टर टेस्ट रिपोर्ट आने तक लक्षण के आधार पर कोई न कोई दवाई देते रहते हैं जैसे- दर्द हो रहा है तो दर्द की गोली दे दी, लूजमोशन हो रहें हैं तो लूजमोशन की गोली दे दी, पेट दर्द है तो पेट दर्द की गोली दे दी। टेस्टों में भी डाईग्नोसिस ज्यादा बेहतर नहीं है क्योंकि डाईग्नोसिस में भी बीमारी की फर्स्ट स्टेज का पता नहीं चलता जैसे- कैंसर या किडनी प्रॉब्लम का। मेडिकल सिस्टम में जब तक टेस्ट से बीमारी का पता नहीं लग जाता उसका इलाज नहीं करते, केवल लक्षणों के आधार पर दवाईयां देते रहते हैं।
यह दवाईयां कुछ समय के लिए बीमारी के लक्षणों को दबा जरूर देती है लेकिन वह बीमारी अंदर ही अंदर तीव्र होती रहती है। नॉर्मली लोग क्या करते हैं कि ऐसे रोग जिनका पता टेस्ट आदि में भी नहीं लगता लेकिन लक्षण उत्पन्न होते रहते हैं तो उन्ही लक्षणों के आधार पर दवाएं ले लेते हैं जैसे- अचानक सिर दर्द होना या खाने की इच्छा न होना।
ऐसी स्थिति में कुछ लोग क्या करते हैं कि सिर दर्द हुआ, दबाया ठीक हो गया छोड़ दिया, भूख नहीं लग रही, खाने का मन नहीं कर रहा है तो चटपटी चीजें खा लेते हैं जो बीमारी को और बढ़ा देती हैं। इसलिए बीमारी का इंडीकेशन मिलने पर केवल सी.टी.स्कैन नहीं कराना है बल्कि नैचरपैथी के द्वारा पूरे शरीर को डिटॉक्सीफाई करना है। हमें स्वयं की इतनी केयर करनी है कि रोग का कारण खत्म हो जाए। इसके लिए अपने खान-पान में सुधार करना है और जो भी अनबैलेंसिंग चीज ले रहे हैं उसे छोड़ देना है।
यदि आप रोग के लक्षणों को इग्नोर कर देते हैं और लक्षण तेज होकर उल्टी या लूजमोशन हो गए हो तो इस इंडीकेशन को इग्नोर नहीं करना है और न ही दवाईयों से दबाना है। यदि दवाईयों से दबा देते हैं तो जो गंदगी प्राकृतिक तौर पर शरीर से बाहर निकल रही है वह रुक जाएगी और धीरे-धीरे इकट्ठा होकर एक नई बीमारी पैदा कर देगी। जितनी भी क्रोनिक बीमारियां है जैसे अल्सर, कैंसर, डाइबिटीज ये सारे एक दिन में कभी नहीं आती। इन्हे बनने में वर्षों लग जाते हैं और यह भी लक्षणों को दवा आदि से दबा देने के कारण ही होता है।
ऐसे में किसी भी बीमारी का लक्षण दिखाई देने पर उसका उपचार करें। उपचार कैसे करें? उल्टी आती है तो आने दें, लूजमोशन आता है तो आने दें। एक दिन का उपवास रखें, उपवास फलाहार से तोड़े, अधिक तली-भुनी चीजें खाना बंद कर दें। इससे शरीर में वेस्ट प्रोडक्ट जमा नहीं होगा और जो वेस्ट प्रोडक्ट शरीर में है वह बाहर निकल जाएगा। शरीर साफ रहने से रजिस्टेंश पॉवर बढ़ेगी, जिससे स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
यदि किसी भी बीमारी के लक्षणों को इग्नोर करते हैं और वह क्रोनिक अर्थात पुरानी बीमारी बन जाती है तो उसके लिए सबसे पहले बॉडी को डिटॉक्सीफाई करना है। बॉडी को डिटॉक्सीफाई करने के लिए पहला माध्यम है भोजन। भोजन ऐसा होना चाहिए जो शरीर को डिटॉक्सीफाई करने में मदद कर सके जैसे- नैचुरल डाईट। नैचुरल डाईट में सभी आवश्यक पोषक तत्व होते हैं, यह रजिस्टेंश पॉवर को बढ़ाता है, वेस्ट प्रोडक्ट नहीं बनाता और नए सेल्स का निर्माण अधिक करता है।
दूसरा माध्यम है उपवास। जिस दिन हम उपवास करते हैं उस दिन शरीर में एक्सट्रा वेस्ट प्रोडक्ट नहीं बनता है लेकिन प्राकृतिक क्रिया द्वारा पहले जमा वेस्ट प्रोडक्ट बाहर निकलता रहता है। कुछ ऐसे रोग हैं जिनमें उपवास की आवश्यकता नहीं होती जैसे- डाईबिटीज, तपेदिक या एसीडिटी। जबकि कुछ ऐसे रोग हैं जिसमें उपवास जरूरी है जैसे- कैंसर, एक्जिमा आदि।
शरीर को डिटाँक्सीफाई करने का तीसरा माध्यम है अंकुरित भोजन। कोई भी बीमार हो तो अंकुरित भोजन लें। यदि बीमारी में खाने की इच्छा कम हो तो एक समय का खाना छोड़ दें। कई बार ऐसा भी होता है कि घर में कुछ ऐसा बनता है जिसे खाए बिना रह नहीं सकते लेकिन वह स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक भी है तो ऐसे में उसे कम मात्रा में लें लेकिन साथ ही एक टाईम का खाना बंद कर दें। यदि किसी दिन हैवीडाईट हो गई तो उसके अगले दिन उपवास करें। ये सारी चीजें शरीर का बैलेंस बनाकर रखती हैं।
चौथा है जूस- बीमारी में फलों के जूस की अपेक्षा वेजिटेबल जूस अधिक लें। सलाद अवश्य लें।
पांचवा है नैचरपैथी द्वारा ट्रीटमेंट जैसे- हीप बाथ, मिट्टी पट्टी, एनिमा, गहरी सांस क्रिया।
विभिन्न थैरेपियों द्वारा ट्रीटमेंट-
मिट्टी थैरेपी- मिट्टी में वेस्ट प्रोडक्ट को बहुत जल्द खींच लेने की अपार शक्ति होती है। इसमें बहुत ज्यादा मैगनेटिक पॉवर होती है। मिट्टी से चिकित्सा करने के लिए लगभग ढाई-तीन फुट गहरी जमीन से मिट्टी निकाल लें। फिर इस मिट्टी को अच्छी तरह आटे की तरह कूट-छान लें। फिर इसे बारह घंटों के लिए भिगो दें। इसके बाद इसे आटे की तरह मिला लें। ध्यान रहे यह न अधिक सख्त और न अधिक गीली हो। इसके बाद एक कपड़ा लेकर इस मिट्टी का आधा इंच मोटा लेप उस कपड़े पर चढ़ा दें और उसे उठाकर रोगी के पेट पर रख दें। इससे मिट्टी पेट को छुएगी लेकिन कपड़ा बाहर की ओर रहेगा। फिर उसके ऊपर एक और कपड़ा डाल दें।
25 मिनट तक इसे ऐसे ही रखा रहने दें। इससे यह मिट्टी शरीर के सारे वेस्ट प्रोडक्ट बाहर खींच लेगी। यदि पेट पर रखी इस मिट्टी को धूप में फेंक दें तो 2 घंटों में ही उससे बदबू आनी लगेगी। यह मिट्टी शरीर से वेस्ट प्रोडक्ट को बाहर निकालने के साथ ही यह आंतों में जमे मल को मुलायम कर देती है। इसके बाद रोगी को एनिमा देने से आंतों की सारी वेस्टेज बाहर आ जाएगी। इस तरह कुछ दिनों तक मिट्टी से चिकित्सा करते हैं तो अंदर की सारी वेस्टेज बाहर आ जाती है।
मिट्टी का उपयोग बहुत है जैसे- किसी को बवासीर हो गया तो गुदा पर मिट्टी का लेप, किसी को एक्जिमा, सोरायसिस आदि है तो मिट्टी का लेप शरीर पर लगा दो, मिट्टी पर नंगे पैर चल सकते हैं। मिट्टी आराम से शरीर के सारे वेस्टेज को बाहर कर देती है। किसी भी रोग में पेट को साफ करने की जरूरत होती ही है क्योंकि यह रोग का सबसे बड़ा कारण है। वैसे भी शरीर के किसी भी स्थान या रास्ते से वेस्ट प्रोडक्ट बाहर निकलता है तो उसका असर पूरे शरीर पर पड़ता है।
एनिमा- वेस्टेज को दूर करने के लिए दूसरा तरीका एनिमा है। एनिमा क्रिया के लिए एनिमा पॉट होता है। इसमें रबड़ की एक नली लगी होती है। एनिमा पॉट को शरीर से थोड़ी अधिक ऊंचाई पर लटका दिया जाता है क्योंकि ऊंचाई पर लटकाने से ट्यूब में प्रेशर आ जाता है। एनिमा पॉट के ट्यूब में लगी रबड़ की नली में तेल लगाकर लैट्रिन अर्थात गुदा के रास्ते अंदर डाल देते हैं यह लगभग तीन इंच अंदर डाल दी जाती है। इसके बाद नल को खोल दें, नल खोलने से पानी अंदर भर जाएग।
फिर नल को बंद करके नली को बाहर निकाल लें। इसके बाद जितनी देर तक पानी को अंदर रोककर रख सकते हैं रोककर रखें। फिर लैट्रिन का प्रेशर आता है तो लैट्रिन जाएं। इससे शरीर के अंदर की जितनी भी वेस्टेज होती है वह बाहर आ जाती है। इस तरह 15 दिनों पर एनिमा करते रहने से आंतों का सिस्टम बिल्कुल ठीक हो जाएगा। इससे जैसे ही पाचन सिस्टम ठीक होगा तो पुरानी कब्ज एसीडिटी, गैस, बदहजमी आदि रोग सभी दूर हो जाएंगे।
जल चिकित्सा- शरीर के वेस्टेज को निकालने के लिए शरीर के छिद्र अर्थात रोमकूपों को खोलना होता है। इसके लिए है- स्टीम बाथ। स्टीम बाथ के लिए एक मशीन होती है जिसकी बनावट ऐसी होती है कि उसमें शरीर अंदर और सिर बाहर होता है। उस मशीन में पानी पीकर बैठने से भाप की गर्मी से शरीर के सारे वेस्ट प्रोडक्ट बाहर निकल जाते हैं। चूंकि किसी भी स्थिति में सिर को गर्मी नहीं दी जाती इसलिए इस स्नान के दौरान एक तौलिये को ठंडे पानी में भिगोकर सिर पर रखें ताकि सिर ठंडा रहें।
कुछ देर इस स्थिति में रहने के बाद पूरे शरीर में पसीना आएगा, जैसे ही पसीना आए पसीना हाथ से पोंछकर ठंडे पानी से स्नान कर लें। इस तरह से शरीर के सारे वेस्ट प्रोडक्ट बाहर निकलने शुरू हो जाएंगे और धीर-धीरे शरीर के रोमकूप भी खुल जाएंगे। इसके अलावा एक स्नान और है जो बहुत ही आसान है वह है- हीप बाथ अर्थात कटिस्नान। इसमें पूरा शरीर बाहर रहता है और केवल कमर का भाग पानी में रहता है।
इस स्नान के लिए एक टब में इतना ही पानी (नार्मल पानी) भर दिया जाता है कि केवल कमर का ही भाग भीग सकें। इसके बाद उसमें पांच से दस मिनट तक बैठे रहें और पेट को मलते रहें। फिर बाहर निकलकर पेट को साफ करें। यह स्नान मुख्य स्नान से हटकर है। इस स्नान का इस्तेमाल सभी बीमारियों में विशेषकर पेट की बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है। यह स्त्रियों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है।
ठंडा-गर्म सेंक- यदि शरीर में कहीं सूजन हो तो उसके लिए गर्म-ठंडा सेंक काफी फायदेमंद रहता है। इसके लिए एक बर्तन में गर्म पानी और एक बर्तन में बर्फ डालकर ठंडा पानी लें। अब गर्म पानी में तौलिया भिगोकर सूजन वाले स्थान पर दो मिनट तक रखें। इसको हटाते ही बर्फ वाले ठंडे पानी में दूसरा तौलिया भिगोकर उसी स्थान पर रखें। इस तरह उस स्थान पर गर्म-ठंडा तौलिया चार-चार बार रखें।
इस क्रिया में तौलिये द्वारा प्रभावित स्थान से वेस्ट प्रोडक्ट को खींचकर बाहर निकाल दिया जाता है। अब सवाल उठता है कि यह वेस्ट प्रोडक्ट को कैसे खींचता है ? जब हमने उस स्थान को गर्म किया तो वहां के सारे सेल्स गर्म हो गए और वहां पर जो खून जमा हुआ था वह थोड़ा सा नर्म हो गया। फिर जैसे ही उस स्थान को ठंडा करते हैं तो वह सारा वेस्ट प्रोडक्ट ब्लड अपने अंदर समेट लेगा।
ब्लड जब किडनी से पास होता है तब किडनी उसे फिल्टर करके वेस्टेज को पेशाब के रास्ते बाहर निकाल देती है। इसका उपयोग गले संबंधी रोग, थाईराईड, पैराथाईराइड, टांसिल, चेस्ट ब्लॉकेज, दमा आदि में किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग स्लिप-डिस्क, किडनी प्रॉब्लम, घुटनों में दर्द आदि में भी किया जाता है।
गीली पट्टी या लपेट- गर्म-ठंडे सेंक की तरह एक और ट्रीटमेंट है- गीली पट्टी। इसके लिए एक सूती कपड़े को ठंडे पानी में भिगोकर निचोड़ लें फिर उसे जहां भी जरूरत हो जैसे- हाथ, पैर, पेट वहां पर इसे लपेट दें। उसके ऊपर सूखा ऊनी कपड़ा लपेट दिया जाता है। कम से कम आधे घंटे और अधिक से अधिक एक घंटे इसे लपेटे रहने दें। इतने समय यह शरीर के सारे वेस्ट प्रोडक्ट को खींच लेता है।
यदि छाती में बलगम जम गया हो तो इसे छाती में लपेट लें, थाईराईड हो, गला बैठ गया हो तो गले में लपेट लें, किसी को लीवर में प्रॉब्लम हो तो पेट पर लपेट लें, किसी को खांसी हो तो छाती पर लपेट लें। यह तो हो गया शरीर के किसी एक अंग के लिए। लेकिन यदि पूरे शरीर के वेस्ट प्रोडक्ट निकालने हो तो क्या करें ? इसके लिए बिस्तर पर दो-तीन कंबल बिछा दें। यदि सर्दी का मौसम हो तो चार-पांच कम्बल ले सकते हैं।
उसके ऊपर सूती कपड़ा या चादर पानी में भिगोकर और निचोड़कर बिछा दें। इसके बाद रोगी के सारे कपड़े उतारकर, उसे गीली अंडरवियर पहनाकर गीली चादर पर लिटा दें। इसके बाद एक तरफ से चादर को हाथ के नीचे से लाकर (हाथों को बाहर रखते हुए) शरीर पर लपेटें। फिर दूसरी ओर से चादर लाकर हाथ को भी अंदर रखते हुए कंबल लपेटें। इसका कारण यह है कि हाथ के नीचे चादर होने के कारण शरीर से निकलने वाले पसीने को चादर सोखेगी।
हाथों को बीच में रखने का कारण यह है कि पसीने आदि के कारण खुजली आदि करने के बाद भी चादर कसी रहेगी। अब कितनी भी गर्मी हो कम से कम एक कंबल तो रखना ही होगा। यदि ठंड हो तो एक-दो कंबल एडवांस में पहले ही बिछा दें। इसे लगभग एक घंटे तक लपेटे रहने दें। यह शरीर का सारा वेस्ट प्रोडक्ट खींच लेता है। इसके बाद कंबल-चादर हटाकर रोगी को स्नान करा दें।
इसका एक और उपयोग है, जैसे हम बुखार होने पर बुखार की गोली खा लेते हैं और बुखार उतर जाता है उसी तरह बुखार होने पर चादर लपेट क्रिया करने पर तुरंत बुखार उतर जाता है। यह सभी के लिए है चाहे बड़े हो या बच्चे। यदि बुखार में अधिक ठंड लग रही हो तो हल्के गुनगुने पानी में भी चादर भिगोकर निचोड़कर लपेट सकते हैं।
जलनेति- यदि गर्दन के ऊपर ब्लॉकेज हो जाए तो उसके लिए जलनेति सबसे अच्छी क्रिया है। इसके लिए हल्के गर्म पानी में नमक मिलाकर बिना झुके हुए पानी एक नाक में डालें और दूसरी नाक से बाहर निकाल दें। फिर दूसरी नाक में डालें और पहली से नाक बाहर निकाल दें। इसके बाद एक नाक से सांस खींचें और दूसरे नाक से छोड़ें, दूसरी नाक से सांस खींचे और पहली से सांस छोड़ें। पानी निकल गया है या नहीं यह पता करने के लिए एक सांस को नीचे छोड़ें।
यदि जरा-सा भी लगे कि पानी अभी पूर्ण रूप से नहीं निकला है तो फिर से सांस ले और छोड़ें। यह नाक की सारी ब्लॉकेज खोल देता है। यह साइनस को भी समाप्त करता है। किसी को माईग्रेन रहता हो, सिर दर्द रहता हो तो उसे यह करना चाहिए। प्राकृतिक चिकित्सा में शरीर के किसी भी विकार को दवा आदि देकर दबाना नहीं है और न ही सुखाना है बल्कि बाहर निकालना है।
कुछ लोग कहते हैं कि मुझे गाजर सूट नहीं करती, खीरा सूट नहीं करता यह कुछ भी नहीं है। इसका उपयोग करने पर यह शरीर की वेस्टेज को निकालता है जिसे लोग रोग समझ लेते हैं। लेकिन यह सामान्य लक्षण होते हैं जो एक-दो दिन के लिए ही पैदा होते हैं और फिर स्वयं ही ठीक हो जाते हैं।
अग्निथैरेपी या सूर्य किरण चिकित्सा- सूर्य की किरणों में सात रंग होते हैं। इन सातों रंगों की अपनी एक अलग एनर्जी और महत्व है। यदि हम उसकी एनर्जी को रिप्लाई करें, किसी दूसरी चीज में उस एनर्जी को डालें तो काफी मेडिसिन तैयार कर सकते हैं और वह भी बिना किसी साइड इफैक्ट वाली। अब सबसे पहले इसका फायदा क्या है? हम क्या करते हैं कि सूर्य किरणों की एनर्जी द्वारा पानी या तेल को चार्ज कर लेते हैं। यदि सूर्य किरणों द्वारा पानी तैयार करते हैं तो वह एक दिन में तैयार होता है और यदि तेल तैयार करते हैं तो वह 45 दिन में तैयार होता है। सूर्य किरणों द्वारा तैयार पानी का प्रयोग तीन दिनों तक और तेल का प्रयोग एक साल तक किया जा सकता है।
सूर्य किरणों द्वारा मेडिसिन तैयार करना- जिस रंग का पानी या तेल बनाना है उस रंग की कांच की बोतल लें। उस रंग की बोतल में पानी या तेल डालकर धूप में रख दें। सुबह बोतल में पानी भरकर धूप में रख दें और शाम को ले आएं। यदि पानी है तो एक दिन में तैयार हो गया और यदि तेल है तो उसे 45 दिनों तक रोजाना धूप में रखें और शाम को ले आएं। बोतल के मुख को लकड़ी के ठेक से बंद कर दें। एक बात ध्यान में रखें कि बोतल को जब धूप में रखें तो उसे किसी लकड़ी की तख्ती पर रखें और शाम को घर में जहां पर भी रखें उसके लिए भी तख्ती का ही प्रयोग करें। यदि किसी को उस रंग की बोतल नहीं मिलती है तो कोई भी बोतल ले लें और उस पर उस रंग की पन्नी लपेट दो तो भी यह वैसे ही काम करेगा।
1. लाल रंग- लाल रंग की बोतल के सूर्य चार्ज पानी की तासीर गर्म होती है। इसलिए पानी के स्थान पर तेल इस्तेमाल करें। इस तेल की मालिश सूजन में लाभकारी है। कितना भी पुराना दमा क्यों न हो इस तेल को छाती पर लगा देने या पानी पिला देने से उसमें लाभ मिलता है।
2. पीला रंग- किसी भी किस्म के रोग की पहली स्टेज हो उसमें सूर्य चार्ज पीले रंग का पानी यूज किया जाता है। इस रंग का सूर्य चार्ज तेल लगाने और पानी पीने के काम आता है।
3. हरा रंग- यह शरीर की सफाई का काम करता है इसलिए इसका उपयोग सफाई के लिए किया जाता है जैसे- हार्ट ब्लॉकेज है, गठिया है, पुरानी कब्ज है, स्किन प्रॉब्लम है। इन सभी में इसका बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है। वैसे इसका प्रयोग हर बीमारी में अच्छा रहता है।
4. बैंगनी रंग- बैंगनी रंग का सूर्य चार्ज पानी खून की कमी में उपयोगी है जैसे किसी के शरीर में खून की कमी हो गई, होमोग्लोबिन की कमी हो गई तो इसके लिए यह बहुत अच्छा होता है।
5. नीला रंग- स्त्रियों से संबंधित रोगों में नीले रंग का सूर्य चार्ज पानी लाभकारी रहता है।
6. आसमानी रंग- इस रंग के सूर्य चार्ज तेल का प्रयोग बालों से संबंधित किसी भी समस्या में कर सकते हैं। यदि इस रंग का पानी पीते हैं तो नर्वससिस्टम से संबंधित सभी प्रॉब्लम में लाभ मिलता है। यदि किसी को लू लग गयी हो या गर्मी के कारण कुछ हो गया हो तो उसे आसमानी रंग का सूर्य चार्ज पानी पिला दें। इसमें 72 घंटे तक एनर्जी रहती है इसलिए इसे तीन से चार बार में पी सकते हैं। यदि बहुत छोटा बच्चा हो तो उसें दो-तीन चम्मच दे दें, बड़ा हो तो एक पूरी बोतल एक दिन में खत्म कर दें, यदि आठ-दस साल का हो तो आधी बोतल भी बहुत है।
वायु चिकित्सा- हम भोजन-पानी के बिना कुछ समय तक रह सकते हैं लेकिन वायु के बिना एक पल भी नहीं रह सकते। वायु हमें ऑक्सीजन प्रदान करती है और कार्बनडाईऑक्साई बाहर निकालती है। वास्तव में इन दोनों का कार्य यह है कि हम जो भोजन करते हैं उसमें ऑक्सीजन मिलकर उसे ऑक्सोडाईज कर देती है। इस क्रिया के बाद शरीर में कार्बनडाईऑक्साईड, पानी और एनर्जी पैदा होती है। एनर्जी हमारे लिए यूज हो जाती है और अन्य दोनों चीजें पानी एवं कार्बनडाईऑक्साइड के रूप में बाहर निकल जाती हैं। लैट्रिन द्वारा हमारे शरीर से वह गंदगी बाहर निकलती है जो बच जाती है, जो डाईजेस्ट नहीं होती, इसलिए हमारे लिए ऑक्सीजन जरूरी है।
जिस तरह हम अपने आप में जीवित प्राणी हैं उसी तरह हमारे शरीर के सेल्स भी जीवित प्राणी हैं और उन्हे भी रोजाना भोजन चाहिए, एनर्जी चाहिए। इसलिए ऑक्सीजन की पूर्ति जरूरी है। हमारी नब्ज (नाड़ी) जितनी ज्यादा फैलेगी हम उतनी ही गहरी सांस ले पाएंगे जिससे हमें ऑक्सीजन ज्यादा मिलेगी। इसीलिए गहरी सांस के लिए प्राणायाम को महत्व दिया गया है। हम जितनी ज्यादा गहरी सांस लेंगे उतनी ही ऑक्सीजन हमारे अंदर जाएगी और जितनी ज्यादा ऑक्सीजन हमारे अंदर जाएगी उतनी ही हमारी बॉडी सही रहेगी।
इसका एक और प्रयोग है और वह यह है कि जब हम दाहिनी नाक से सांस लेते हैं तो शरीर को गर्मी मिलती है और जब बाईं नाक से सांस लेते हैं तो ठंड मिलती है। यह हमारी बॉडी का ऑटोमेटिक सिस्टम है कि हमारे शरीर को गर्मी चाहिए तो दायां और ठंड चाहिए तो बायां स्वर अर्थात सांस शुरू हो जाती है। लेकिन जब कभी विकार या जुकाम हो जाता है तो यह सिस्टम डिस्टर्ब हो जाता है। इसे सही करने के लिए या बॉडी के एयरकंडीशन सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए हम एक नाक से जितना हो सके उतनी गहरी सांस लेंगे, बिना आवाज करें। उसके बाद पहले को बंद करके दूसरे से धीरे-धीरे सांस छोड़ेंगे। सांस छोड़ते समय अंदर की वायु को पूर्णरूप से बाहर निकाल देंगे। उसके बाद पहली नाक से दुबारा सांस वापिस लें।
इस तरह दस से पंद्रह बार करें तो आपका शरीर साफ हो जाएगा। सबसे आसान है एक मिनट में सांस की गिनती करना। एक बार सांस लेना और छोड़ना एक सांस कहलाता है। एक हफ्ते तक इस तरह अभ्यास करें और फिर देखें कि आप एक मिनट में कितनी सांस ले पाते हैं। आप देखेंगे कि सांस की संख्या कम हो गई है। इसका अभ्यास करेंगे तो इसकी संख्या धीरे-धीरे कम होती जाएगी। इससे क्या होगा कि एक तो आपके शरीर का एयरकंडीशन सिस्टम ठीक हो जाएगा और दूसरा ठंड में अधिक ठंड नहीं लगेगी और गर्मियों में अधिक गर्मी भी नहीं लगेगी।
पांचवा तत्व है आकाश- आकाश मतलब खाली स्थान। आकाश तत्व हम दो चीजों से प्राप्त कर सकते हैं- पहला है, उपवास और दूसरा है, भूख से थोड़ा कम भोजन लेना। लेकिन यह सबसे मुश्किल काम है क्योंकि हम जितना खाना चाहते हैं उतना खाते ही हैं। हम जितना खाते हैं उससे एक रोटी कम खाएं, यह बहुत मुश्किल है लेकिन यदि यह कर लिया जाए तो बहुत फायदा मिलता है। हमारे शरीर में स्पेस क्यों जरूरी है।
एक उदाहरण-
हमारी जो पाचन प्रणाली है यदि हम उसमें अधिक भोजन भर लेते हैं तो जो पाचक रस निकलेगा वह केवल भोजन के बाहरी हिस्से में ही मिक्स हो पायेगा और बीच का हिस्सा बिना मिक्स हुए रह जाएगा जिससे वह अपचा ही रह जाएगा। इसके लिए एक उदाहरण- एक बोतल ले लें और उसमें दो चीजे भर दें और फिर उसे मिक्स करें, वह दोनों चीजें आपस में मिक्स नहीं होगी लेकिन यदि बोतल को थोड़ा खाली रखें और फिर उन्हें मिक्स करें तो वह चीजें आपस में मिक्स हो जाएगी। इसी तरह यदि हमारे पेट में थोड़ी खाली जगह होगी तो उसमें पाचक रस अच्छी तरह से मिक्स होगा और पाचन भी आराम से होगा।
योगासन से ट्रीटमेंट- जो योगासन जिस अंग को एस्ट्रैच करता हो उस अंग से संबंधित यदि कोई रोग हो तो योगासन करें। जो मुद्रा जिस रोग में लाभकारी हो वह मुद्रा करें। इस प्रकार से बीमारियों में नैचरपैथी से संबंधित जितनी भी थैरेपी द्वारा ट्रीटमेंट है उसका इस्तेमाल करें और जैसे भी हो शरीर को डिटॉक्सीफाई करें।